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Showing posts from June, 2019

।। मोर पंख की कहानी ।।

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एक समय गोकुल में एक मोर रहता था वह रोज़ जब कृष्ण भगवान आते  🎺 🎺 और जाते तो उनके द्वार पर बैठा एक ही भजन गाता 🎺   🎺 " 🎺 🎺 मेरा कोई ना सहारा बिना तेरे 🎺 🎺 गोपाल सांवरिया मेरे 🎺 🎺 माँ बाप सांवरिया मेरे" 🎺 🎺 🎺 🎺 वो इस तरहा रोज़ यही गुनगुनाता रहता  🎺 🎺 एक दिन हो गया 2 दिन हो गये इसी तरहा 1 साल व्यतीत हो गया 🎺 🎺 परन्तु कृष्ण ने एक ना सुनी तब वहा से एक मैना उडती जा रही थी 🎺 🎺 उसने मोर को रोता हुआ देखा और अचम्भा किया 🎺 🎺 उसे मोर के रोने पर अचम्भा नही हुआ , 🎺 🎺 उसे ये देख के अचम्भा हुआ की क्रष्ण के दर पर कोई रो रहा है 🎺 🎺 🎺 🎺 वो मोर से बोली मैना: हे मोर तू क्यों रोता हैं 🎺 🎺 तो मोर ने बताया की मोर :पिछले एक साल से में इस छलिये को रिझा रहा हु परन्तु इसने आज तक मुझे पानी भी नही पिलाया 🎺 🎺 🎺 🎺 ये सुन मैना बोली मैना: में बरसना से आई हु तू भी वहा चल  🎺 🎺 और वो दोनों उड़ चले और उड़ते उड़ते बरसाने पहुच गये  🎺 🎺 जब मैना वहा पहुची तो उसने गाना शुरू किया  🎺 🎺 🎺🎺श्री राधे राधे राधे बरसाने वाली राधे 🎺🎺 परन्तु मोर तो बरसाने मे...

किताबें झाँकती हैं बंद आलमारी के शीशों से II

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किताबें झाँकती हैं  बंद आलमारी के शीशों से  बड़ी हसरत से तकती हैं महीनों अब मुलाकातें नहीं होती जो शामें उनकी सोहबत में कटा करती थीं अब अक्सर गुज़र जाती है कम्प्यूटर के पर्दों पर बड़ी बेचैन रहती हैं क़िताबें उन्हें अब नींद में चलने की आदत हो गई है जो कदरें वो सुनाती थी कि जिनके जो रिश्ते वो सुनाती थी वो सारे उधरे-उधरे हैं कोई सफा पलटता हूँ तो इक सिसकी निकलती है कई लफ्ज़ों के मानी गिर पड़े हैं बिना पत्तों के सूखे टुंड लगते हैं वो अल्फ़ाज़ जिनपर अब कोई मानी नहीं उगते जबां पर जो ज़ायका आता था जो सफ़ा पलटने का अब ऊँगली क्लिक करने से बस झपकी गुजरती है किताबों से जो ज़ाती राब्ता था, वो कट गया है कभी सीने पर रखकर लेट जाते थे कभी गोदी में लेते थे कभी घुटनों को अपने रिहल की सूरत बनाकर नीम सजदे में पढ़ा करते थे, छूते थे जबीं से वो सारा इल्म तो मिलता रहेगा आइंदा भी मगर वो जो किताबों में मिला करते थे सूखे फूल और महके हुए रुक्के किताबें मँगाने, गिरने उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे उनका क्या होगा वो शायद अब नही होंगे!!         - Gulzar