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Showing posts from July, 2017

जिन्दगी

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*गुलजार साहब की एक सुंदर कविता* जिन्दगी की दौड़ में, तजुर्बा कच्चा ही रह गया...। हम सीख न पाये 'फरेब' और दिल बच्चा ही रह गया...। बचपन में जहां चाहा हँस लेते थे, जहां चाहा रो लेते थे...। प...

स्कूल का समय

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एक ज़िद की है दिल से कि फिर से स्कूल जाना चाहता हूँ ज़िम्मेदारी को रख कर परे, सिर्फ बस्ते का बोझ उठाना चाहता हूँ एक बार फिर से उसी बेंच पर अपने दस्तख़त करना चाहता हूँ "आज का विचार" त...

बोल ....****

* बोल   * कहाँ पर बोलना है और कहाँ पर बोल जाते हैं। जहाँ खामोश रहना है वहाँ मुँह खोल जाते हैं।। कटा जब शीश सैनिक का तो हम खामोश रहते हैं। कटा एक सीन पिक्चर का तो सारे बोल जाते हैं...

बचपन...

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साथ साथ जो खेले थे बचपन में, वो दोस्त अब थकने लगे है... किसीका पेट निकल आया है, किसीके बाल पकने लगे है... सब पर भारी ज़िम्मेदारी है, सबको छोटी मोटी कोई बीमारी ...

Happy Monsoon...☔☔

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बारिश पड़े तो भागिए नहीं....... छत नहीं खोजिये........ छाते कभी-कभार बंद रखिये...... किस बात का डर है......? भीग जायेंगे न...........? तो क्या हुआ...... पिघलेंगे नहीं.. ....फिर से सूख जायेंगे.. .... तेजाब नहीं बरस रहा है........ आप...

yado ka panna... रफ़ कॉपी..

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📔 कहानी रफ़ कॉपी की 📔 ............................................. 👥जब हम पढ़ते थे तो हर subject की कॉपी अलग थी। लेकिन एक ऐसी कॉपी📖 थी जो हर subject को संभालती थी। उसे हम कहते थे "रफ़ कॉपी"📔 यूँ तो रफ़ कॉपी📔 का मतलब खुरदुरा होता है। ...